Friday, March 15, 2013


पुरानी पीढ़ी -2

छेरिंग दोरजे  जी को हम अनेक नामों से जानते हैं । लाहुलियों के लिए वे भोटी मास्टर हैं । कुल्लू में उन्हे दोर्जे जी कहते हैं । भारतीय विद्वान इन्हे लामा जी के नाम से जानते हैं ।  पाश्चात्य विद्वानो मे वे लाहुल स्पीति के विश्व कोश ( Encyclopedia of Lahul Spiti) के नाम से लोकप्रिय हैं । महा महिम दलाई लामा इन्हे जङ जुङ दोर्जे के नाम से पुकारते हैं । भाषा विज्ञान , इतिहास , धर्म , दर्शन, आदि विविध विषयों में इन का गहन अध्ययन है । इस बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न वयोवृद्ध के ज्ञानानुभवों का कोई ओर छोर नहीं है । इन्हो ने अभी तक कोई स्वतंत्र पुस्तक नहीं लिखी है लेकिन निकट भविष्य में  पश्चिमी  हिमालय की  जङ जुङ भाषा  पर महत्व पूर्ण पुस्तक सम्भावित हैं . ये  रिंचेन ज़ङ्पो साहित्यिक एवं  साँस्कृतिक सभा  के संस्थापक उपाध्यक्ष हैं ,जिस के माध्यम से महत्वपूर्ण गोष्ठियाँ आयोजित कर ये हिमालयी युवाओं की  लेखन प्रतिभा को प्रोत्साहन देने का महती कार्य कर रहे हैं ।बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि छेरिंग दोरजे जी प्राचीन तिब्बती तांत्रिक बौद्ध परम्परा ज़ोगछेन में  दीक्षित साधक हैं । साथ में वे बौद्ध पूर्व आदिम बोन परम्परा में भी दीक्षित है ।
लेकिन मैं इन का प्रशंसक फक़त और फक़त इस लिए हूँ कि  हिमालय के लिए इन के मन में विराट स्वप्न हैं और यहाँ की युवा पीढ़ी को ये बेहद उम्मीद से देखते हैं । युवाओं के लिए उन की एक कविता ---

यौवन का जल प्रपात

स्वच्छन्द नील गगन
गुनगुनी धूप का आनन्द
सुन्दर सुगन्धित कोमल पुष्प
उत्तुंग स्थिर गिरिमालाएं
आह!
कैसा मनोहर दृष्य है यह
झर झर गिरता जलप्रपात यह
सामने की ऊँची दृषद्  से यह
देखिये
लहरों से उठती झाग श्वेत , गंधहीन सी
प्रकाश के बिम्ब में मौर के पंख  सुग्गा के पर
बनारसी साड़ी का रूपाँकन , इन्द्र धनुष के रंग
सुनिए  निर्मल झरने के शाएं शाएं में
यौवन के संगीत गंधर्व के गीत
इन्द्र की स्वर लहरी
सरस्वती की वाणी
कोयल की कूक
हाँ !
प्राकृतिक हैं  जलस्रोत यह कृत्रिम नहीं
यशस्वी हैं संस्करित हैं  
शूर वीर हैं प्रचण्ड हैं  
स्वाभिमानी हैं धैर्य वान हैं
अजेय हैं अमर हैं
सुन्दर सुडौल तन के ये स्वामी
हृदय विशाल , मन कोमल के स्वामी
ये हैं
युवा वृंद हिमालय के, पर्वत राज के
शक्ति पुंज हैं ये भारत महान के
युवाओं के,  यौवन के हैं ये जलप्रपात

Tshering Dorje
Born : April 4 , 1936.
Village Guskiar Near Keylong
Retired as Public Relations Officer , Govt. of HP 

Friday, March 8, 2013

इतिहासकार - और एक संवेदनशील कवि भी



पुरानी पीढ़ी - 1 


इस मितभाषी विद्वान के पास जानकारियों की नई से नई दुनिया मे झाँकने की अनूठी खिड़कियाँ हैं. लेकिन अभी तक लिखी किताबों मे उन जानकारियों का अंश मात्र ही आ पाया है. तोब्दन जी ऐसे इतिहासकार हैं, जो अपनी हाईपोथीसिज़ को कभी भी ब्लेक एंड व्हाईट मे नही लाते, जब तक कि उसे पर्याप्त प्रमाणों द्वारा 'एस्टेब्लिश' न कर लें. यह विनम्र, कर्मठ तथा दृढ़्प्रतिज्ञ इंसान मेरा आदर्श पुरुष है. तोबदन जी को हम इतिहासकार के रूप में जानते हैं .उन्हों ने इतिहास  की  सात किताबें लिखीं हैं  अंग्रेज़ी में .  बहुत कम लोग जानते हैं कि वे हिन्दी भाषा के विद्यार्थी रहे हैं और भोटी व्याकरण पर एक  पुस्तिका लिखी है . लेकिन उन्हे एक संवेदनशील कवि के रूप में कोई नहीं जानता .  मुझे याद है एक सेमिनार में उन्हों ने एक छोटी सी सुन्दर  कविता  भोटी भाषा में सुनाई थी . साथ में अनुवाद भी. हाल ही मे हिन्दी लघु पत्रिका अविराम में उन्हो ने अपनी एक सुन्दर रचना छपवाई है .यह कविता उन्हो ने मूल रूप से हिन्दी मे लिखी है .  आप सब के लिए शेयर कर रहा हूँ


जा रहा है आदमी


जा रहा है आदमी,
जाने किधर जा रहा है। 

चबा जाता है चट्टान को ,
रेत को खा जाता है ,
जंगल को निगल जाता है, 
जा रहा है आदमी । 

ज़मीन को उलट देता है,                
पहाड़ों में छेद कर देता है,
नदी को रोक देता है,
जा रहा है आदमी। 
                                                                             
तारे तोड़ कर लाता है,
नक्षत्र खराब करता है,
चाँद को छेड़ता है,                                                        
जा रहा है आदमी। 

देख रहे हैं, अचम्भित
चाँद और सूरज,
जा रहा है आदमी
धरती को समेटे ,
आकाश को ओढ़े  ,
जा रहा है आदमी । 

निष्क्रिय हैं सृष्टि के रचयिता ,
लाचार हैं विधि के लेखक ,
यमराज व्यग्र हैं ,
जा रहा है आदमी ।  

सब देख रहे हैं  , जा रहा है आदमी 
न जाने किधर जा रहा है आदमी  । 

                                                                                                              
Tobdan:
Birth: 1945 in Lahul, Himachal Pradesh. Education: BA, LL.B., Writes in English, Hindi and Bhoti. on History, Culture and Language related to the areas of Western Himalayas. Strong hold on the Tribal  history. Published seven books in English and one in Hindi/Bhoti on History etc. Runs an annual journal ‘Kunzom’ on the languages and culture of Himachal Pradesh. After retirement in 2004 from the NABARD wholly devoted to writing.